Wednesday, July 25, 2012

उत्तर प्रदेश के आज़मगढ जनपद मे दबंग के खेत मे भैस जाने पर दलित व्यक्ति को पीटकर मार डालने व मृतक के पुत्रगण को घायल करने के सन्दर्भ मे !

                                                                                                                                                                      दिनांक - 25 जुलाई, 2012.
सेवा मे,
          श्रीमान अध्यक्ष महोदय,
          राष्ट्रीय मानव अधिकार अयोग,
          नई दिल्ली - भारत !

विषय :- उत्तर प्रदेश के आज़मगढ जनपद मे दबंग के खेत मे भैस जाने पर दलित व्यक्ति को पीटकर मार डालने व मृतक के पुत्रगण को घायल करने के सन्दर्भ मे !

 महोदय,

         हम आपका ध्यान विषयक के सन्दर्भ मे आकृष्ट कराना चान्हुंगा, जहा बरहद थाने के बेलवाना गांव मे सोमवार की शाम को खेत मे भैस चले जाने पर दबंगो ने दलित 55 वर्षीय अवधनरायण राम, पुत्र - छटंकी राम को लाठी - डंडे से पीट- पीट कर मार डाला ! मृतक के पुत्रगणो देवेन्द्र व गोलू द्वारा विरोध करने पर हमला कर उन्हे भी घायल कर दिया !

        अत: आपके से अनुरोध है की मामले मे त्वरित न्यायोचित कार्यवाही करते हुए अनुसुचित जाति एवम अनुसुचित जनजाति (अत्याचार निवारन) नियम - 1995 व अधिनियम - 1989 के तहत मामला दर्ज कर और मृतक के परिजनो को सुरक्षा के साथ मुआवजा प्रदान कराने की कृपा करे !

 

भवदीय

(डा0 लानिन)

महासचिव,

मानवाधिकार जननिगरानी समिति, वाराणसी - 221002

उत्तर प्रदेश - भारत !

मो0 - + 91-9935599333.

ई-मेल - lenin@pvchr.asia

Please Visit :-
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उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद मे इलेक्ट्रीक बिजली से संविदाकर्मी के झुलसने के सन्दर्भ मे !

                                                                                                                                                                       दिनांक - 25 जुलाई, 2012.
सेवा मे,
          श्रीमान अध्यक्ष महोदय,
          राष्ट्रीय मानव अधिकार अयोग,
          नई दिल्ली - भारत !

विषय :- उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद मे इलेक्ट्रीक बिजली से संविदाकर्मी के झुलसने के सन्दर्भ मे !

 महोदय,

         हम आपका ध्यान विषयक के सन्दर्भ मे आकृष्ट कराना चान्हुंगा, चोलापुर के क्राइस्ट नगर सबस्टेशन (आयर) के स्विचयार्ड मे सोमवार को एक और संविदा कर्मचारी झुलस गया !  जिसकी हालत नाजुक बनी हुयी है, 90 फीसदी तक झुलस गये कर्मी के सन्दर्भ मे अधिकारीगण साफ जबाव नही दे पा रहे है ! 
        
        पीडित वाराणसी के बडागांव थाना क्षेत्र के पुआरी खुर्द गांव का जोखू प्रसाद, उम्र - 35 वर्ष है, जो क्राइस्ट नगर 33/11. केवी सबस्टेशन पर संविदा पर तैनात है ! जहा अचानक बिजली आपूर्ति  बहाल हो गई और वह खुले तार मे प्रवाहित करेंट की चपेट मे आ गया और उसका पूरा शरीर बुरी तरह झुलस गया ! 
 
       विदित हो की इस तरह की घटना वाराणसी जनपद मे लगातार घट रही है, और अधिकारी लोंग इस ओर से आंख मूदे है !

        संलग्नक :-   http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20120724a_006190012&ileft=227&itop=77&zoomRatio=183&AN=20120724a_006190012    

       अत: आपके से अनुरोध है की मामले मे त्वरित न्यायोचित कार्यवाही करते हुए संविदा कर्मचारियो के हक़ मे उचित दिशा - निर्देश जारी करे !

 

भवदीय

(डा0 लानिन)

महासचिव,

मानवाधिकार जननिगरानी समिति, वाराणसी - 221002

उत्तर प्रदेश - भारत !

मो0 - + 91-9935599333.

ई-मेल - lenin@pvchr.asia




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Upendra Kumar
Manager Model Block,
PVCHR/JMN,
Sa 4/2A, Daulatpur, Varanasi,
U.P.-India-221002.
Mob:-  +91-9935599338

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Saturday, July 21, 2012

"You can chain me, you can torture me, you can even destroy this body, but you will never imprison my mind"

PVCHR: "You can chain me, you can torture me, you can eve...: http://pvchr.asia/?id=85 National Consultation Report National Consultation on "Testimonial campaign contribute to eliminate impun...

Friday, July 20, 2012

झारखण्ड के लातेहार जनपद मे एक दंपति पर जादू - टोने का आरोप लगाकर मज़बूर किया अपना ही मल-मूत्र खाने-पीने को !

                                                                                                                                                                       दिनांक - 21 जुलाई, 2012.
सेवा मे,
          श्रीमान अध्यक्ष महोदय,
          राष्ट्रीय मानव अधिकार अयोग,
          नई दिल्ली - भारत !

विषय :- झारखण्ड के लातेहार जनपद मे एक दंपति पर जादू - टोने का आरोप लगाकर मज़बूर किया अपना ही मल-मूत्र खाने-पीने को !

महोदय,
         हम आपका ध्यान विषयक के सन्दर्भ मे आकृष्ट कराना चान्हुंगा, जहा लातेहार जिले में जादू टोने का अरोप लगाते हुए पंचायत एक दंपति के साथ हैवानियत पर उतर आई। दंपति पर दबाव बनाकर अपना ही मल-मूत्र खाने-पीने को विवश किया।

        सम्बन्धित जनपद के पूरो गांव के रॉबर्ट लकड़ा [65 वर्ष] व उसकी पत्नी कोलेस्टीना [60 वर्ष]  इस हैवानियत के शिकार हुयी, दोनों को बीते आठ जुलाई को भरी पंचायत में पेश किया गया। पंचायत ने हैवानियत भरा फैसला सुनाते हुए उसपर अमल कराया। वहा के स्थानीय पुलिस - प्रशासन को इसकी भनक तक नही लगी, मामला जब जोर पकडा तब 11 लोगों के खिलाफ सोमवार को मामला दर्ज कर लिया गया।

       विदित हो की इस तरह के अमानुष कृत्य हमेशा घटित हो जाती है और स्थानीय स्तर के पुलिस - प्रशासन चुप्पी साधे रहते है, दोनो पीडितो की मानव गरिमा की भरपायी किस तरह से की जायेगी !

       अत: आपके से अनुरोध है की मामले मे त्वरित कार्यवाही करते हुए हैवानियत को कारित करने वाले और बढावा देने वाले पर कठोर से कठोर कानूनी कार्यवाही की जाए एवम पीडितो को सुरक्षा के साथ पुनर्वासन करायी जाए, जो आपकी बडी कृपा होंगी !

 

भवदीय

(डा0 लानिन)

महासचिव,

मानवाधिकार जननिगरानी समिति, वाराणसी - 221002

उत्तर प्रदेश - भारत !

मो0 - + 91-9935599333.

ई-मेल - lenin@pvchr.asia

झारखंड में दंपति के साथ पंचायत की हैवानियत

लातेहार। झारखंड के लातेहार जिले में जादू टोने का अरोप लगाते हुए पंचायत एक दंपति के साथ हैवानियत पर उतर आई। दंपति पर दबाव बनाकर अपना ही मल-मूत्र खाने-पीने को विवश किया।

मामला जिले के पूरो गांव का है। जून में कई मवेशियों की अचानक मौत हो गई थी। ग्रामीणों का कहना था कि ऐसा गांव के रॉबर्ट लकड़ा [65] व उसकी पत्नी कोलेस्टीना [60] के जादू टोने से हुआ है। इसके बाद दोनों को बीते आठ जुलाई को भरी पंचायत में पेश किया गया। पंचायत ने हैवानियत भार फैसला सुनाते हुए उसपर अमल कराया। एसएसपी क्रांति कुमार ने बताया कि 11 लोगों के खिलाफ सोमवार को मामला दर्ज कर लिया गया।


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Wednesday, July 18, 2012

उत्तर प्रदेश के सीतपुर जनपद मे खाकी वर्दी पहने डीएसपी ने अपने जूते से हटाया अज्ञात युवक के शव का कपडा व मृतक के लाश को भी पलट कर देखने की कोशिश के सम्बन्ध मे !


                                                                                                                                                                      दिनांक - 18 जुलाई, 2012.
सेवा मे,
          श्रीमान अध्यक्ष महोदय,
          राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग,
          नई दिल्ली - भारत !
 
विषय -  उत्तर प्रदेश के सीतपुर जनपद मे खाकी वर्दी पहने डीएसपी ने अपने जूते से हटाया अज्ञात युवक के शव का कपडा व मृतक के लाश को भी पलट कर देखने की कोशिश के सम्बन्ध मे !
 
महोदय,
         हम आपका ध्यान विषयक के सन्दर्भ मे आकृष्ट कराना चन्हुंगा, जहा पुलिसिया असंवेदनशीलता के कारण मानवता शर्मसार हो गयी ! मामला यह है की सम्बन्धित जनपद के रेउसा इलाके के बसंतापुर गांव मे पैतीस वर्षीय एक अज्ञात युवक की लाश मिली, जिसके शरीर पर कई जगह धारदार हथियार से काटे जाने के निशान थे और कपडे कीचड. से सने थे ! वहा के ग्रामीणो ने इसकी सूचना पुलिस को दिये, जिस पर मौका - मुआयना करने डिप्टी एसपी अपने मातहत पुलिसकर्मियो के साथ पहुंचे ! 
 
        खाकी वर्दी मे मौजूद डीसपी जयप्रकाश सिह यादव ने दम तोड. चुके आदमी की शिनाख्त के लिए हाथ लगाने की भी जहमत नही उठाई और उपस्थित स्थानीय लोंगो की मौजूदगी मे जूते से ही मृतक के शरीर पर पडे. कपडे. को हटाये तथा लाश को पलट कर देखने की भी कोशिश की गयी !  इस पुलिसिया असंवेदनशीलता का गवाह एक बार फिर उत्तर प्रदेश बना !
 
        इस शर्मनाक वरदात को अंजाम देने वाले पुलिस कर्मी पूरे घटनाक्रम को ही झुठला रहे है, जबकि स्थानीय अखबार मे छपी फोटो अमानवीय हरकत व घिनौनी पडताल का साफ - साफ तस्वीर पेश कर रहा है, जिसे झुठलाया नही जा सकता !  
 
 
         अत: आपसे से निवेदन है की मामले मे त्वरित न्यायोचित कार्यवाही करते हुए मानव गरिमा और अस्मिता को सुनिश्चित कराने के लिए सम्भावित दोषी पुलिस कर्मी पर दण्डात्मक कार्यवाही करे व मृतक के हत्या मे उच्चस्तरीय जांच कराते हुए परिजनो को मुआवज़ा प्रदान कराने की कृपा करे !
 
 
भवदीय 
 
 
(डा0 लेनिन)  
महासचिव
मानवाधिकार जन निगरानी समिति,
पता - सा 4/2ए., दौलतपुर, वाराणसी - 221002.
उत्तर प्रदेश - भारत !
 
मो0 - +91-9935599333.
ई-मेल - lenin@pvchr.asia
 

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Tuesday, July 17, 2012

उत्तर प्रदेश के चन्दौली जनपद मे सार्वजनिक जमीन में स्थित शिव मन्दिर मे जलाभिषेक से रोके गये दलित और विरोध करने पर पुलिस ने की पिटाई के सन्दर्भ मे !

                                                                                                                                                                      दिनांक - 18 जुलाई, 2012.
सेवा मे,
          श्रीमान अध्यक्ष महोदय,
          राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग,
          नई दिल्ली - भारत !
 
विषय - उत्तर प्रदेश के चन्दौली जनपद मे सार्वजनिक जमीन में स्थित शिव मन्दिर मे जलाभिषेक से रोके गये दलित और विरोध करने पर पुलिस ने की पिटाई के सन्दर्भ मे !
 
महोदय,
         हम आपका ध्यान विषयक के सन्दर्भ मे आकृष्ट कराना चन्हुंगा, जहा सैयद्राज़ा थाना क्षेत्र के काजीपुर गांव में दलितों को शिव मंदिर में सोमवार को जाति सूचक शब्द इस्तेमाल कर जलाभिषेक से रोक दिया गया। यही नहीं निजी मंदिर बताकर धकियाते हुए उन्हें बाहर कर दिया गया।  मौके पर पहुंची पुलिस ने लाठियां फटकार कर लोगों को हटाने का प्रयास किया। इस दौरान पिटायी से बचने के लिए दो लोग कैलाश राम व शंकर राम नहर में कूद गये। नहर से निकालकर पुलिस ने उनकी जमकर पिटायी की और जीप में बैठाकर थाने भेज दिया।
      
        विदित हो की पिछले सोमवार को सभी जाति के लोगों ने यहां पूजा अर्चना की थी। लेकिन सोमवार को प्रात: 8 बजे से अनुसूचित जाति के लोगों को मना कर दिया गया और सार्वजनिक मंदिर में ताला लगाकर बाहर से पूजन अर्चन करने को कह दिया गया।  जबकि राजस्व विभाग की तरफ से लेखपाल शंकर ने मानचित्र देखकर बताया कि शिव मंदिर सार्वजनिक जमीन में स्थित है।
 
 
         अत: आपसे से निवेदन है की मामले मे त्वरित न्यायोचित कार्यवाही करते हुए दलितो के गरिमा और अस्मिता को सुनिश्चित कराने के साथ सम्भावित दोषियो एवम पुलिस कर्मियो पर दण्डात्मक कार्यवाही करने की कृपा करे !
 
 
भवदीय 
 
 
(डा0 लेनिन)  
महासचिव
मानवाधिकार जन निगरानी समिति,
पता - सा 4/2ए., दौलतपुर, वाराणसी - 221002.
उत्तर प्रदेश - भारत !
 
मो0 - +91-9935599333.
ई-मेल - lenin@pvchr.asia
 

विरोध करने पर पुलिस ने की पिटाई

शर्मनाक काजीपुर गांव में सार्वजनिक जमीन पर बना है मंदिर, निजी मंदिर बताते हुए दलितों के साथ की गई अभद्रता

सैयदराजा (एसएनबी)। स्थानीय थाना क्षेत्र के काजीपुर गांव में दलितों को शिव मंदिर में सोमवार को जाति सूचक शब्द इस्तेमाल कर जलाभिषेक से रोक दिया गया। यही नहीं निजी मंदिर बताकर धकियाते हुए उन्हें बाहर कर दिया गया। यह सूचना गांव में आग की तरह फैल गयी तो लोगों में जबरदस्त आक्रोश व्याप्त हो गया। मंदिर पर लोग इकठ्ठे हो गये और वाद-विवाद होने लगा। सूचना पाकर मौके पर पहुंची पुलिस ने लाठियां फटकार कर लोगों को हटाने का प्रयास किया। इस दौरान पिटायी से बचने के लिए दो लोग नहर में कूद गये। नहर से निकालकर पुलिस ने उनकी जमकर पिटायी की और जीप में बैठाकर थाने भेज दिया। मामला बिगड़ता देख इसकी सूचना आला अधिकारियों को दी गयी।

 

सूचना पर एएसपी ऑपरेशन विजय भूषण, सीओ चकिया यशपाल सिंह, एसडीएम स्वामीनाथ पाठक, राजस्व निरीक्षक शिव शंकर पाठक, चन्दौली कोतवाल आरपी यादव मौके पर पहुंच गये। बताया जाता है कि श्रावण मास के द्वितीय सोमवार को जहां भक्तों ने शिवालयों व मंदिरों में जाकर जलाभिषेक कर मत्था टेका वहीं थाना क्षेत्र के काजीपुर गांव में 50 वर्ष पुराने शिव मंदिर को निजी मंदिर बताकर अनुसूचित जाति के लोगों को दर्शन पूजन करने से मना करने पर धर्म व आस्था के नाम पर बवाल हो गया और देखते ही देखते गांव में एक जाति विशेष के प्रति आक्रोश पैदा हो गया।

 

पिछले सोमवार को सभी जाति के लोगों ने यहां पूजा अर्चना की थी। लेकिन सोमवार को प्रात: 8 बजे से अनुसूचित जाति के लोगों को मना कर दिया गया और सार्वजनिक मंदिर में ताला लगाकर बाहर से पूजन अर्चन करने को कह दिया गया। मंदिर पर तैनात पुलिसकर्मियों ने व्याप्त तनाव से थानाध्यक्ष को अवगत कराया और फोर्स की मांग की। मौके पर पहुंची फोर्स ने लोगों को हटाने के लिए लाठियां फटकारनी शुरू कर दी। इससे डरकर कैलाश राम व शंकर राम पास ही स्थित नहर में कूद पड़े। लोगों का कहना है कि नहर से निकालकर उन दोनों की जमकर पिटाई की गई और हिरासत में थाने भिजवा दिया गया।

 

निजी मंदिर बताने वाली भोला यादव की पत्नी आशा देवी का कहना है कि पिछले वर्ष अक्टूबर माह में नवरात्र को रामफल की पत्नी सुधा ने मंदिर में मुग्रे की बलि दी थी, इसलिए मैंने उन्हें यहां पूजा अर्चना से मना किया। वहीं रामफल की पत्नी सुधा ने बताया कि मैंने अपने घर में शीतला मां की स्थापना की है और इसी की सफलता की कामना लेकर शिव मंदिर गयी थी। मुग्रे की बलि देने का आरोप सरासर गलत है। सूचना पाकर एएसपी ऑपरेशन विजय भूषण, सीओ चकिया यशपाल सिंह, एसडीएम स्वामीनाथ पाठक, राजस्व निरीक्षक शिव शंकर पाठक, चन्दौली कोतवाल आरपी यादव मौके पर पहुंच गये। वहां ग्रामीणों से बातचीत की और थाना बुलाकर मामले को सुलह समझौते के तहत मामले को हल कराया गया। राजस्व विभाग की तरफ से लेखपाल शंकर ने मानचित्र देखकर बताया कि शिव मंदिर सार्वजनिक जमीन में स्थित है। थाना प्रांगण में सुलह समझौते के तहत दोनों पक्षों को समझा बुझाकर मामले को रफा दफा कर दिया गया और मंदिर की सुरक्षा के लिए चार पुलिस कर्मियों को तैनात कर दिया गया। तनाव देखते हुए पीएसी भी बुला ली गई है।


 
 
 

PVCHR: The Saga of Torture in Kashmir

PVCHR: The Saga of Torture in Kashmir: http://www.mynews.in/News/the_saga_of_torture_in_kashmir_N467069.html http://www.pvchr.asia/?id=84 The Kashmir issue has been fest...

Tuesday, July 10, 2012

Equality for Dalits: Does it exist? - Kashmir Times

Equality for Dalits: Does it exist? - Kashmir Times

Equality for Dalits: Does it exist?
Reviewed By Mushtaq Ul Haq Ahmad Sikander
Book Review
Justice, Liberty, Equality: Dalits in Independent India
Author: Lenin Raghuvanshi
Publisher: Frontpage Publications, London, U.K
Year of Publication: 2012
Price: Not Mentioned Pages: 135
ISBN: 9789381043042
Dalits in India have been suffering since time immemorial in India. Hinduism which believed in Varna system of caste coupled with the Aryan supremacy structured the prejudice, bias and exploitation against dalits. It was deemed to be God ordained commandment on the higher castes to demean, exploit and kill them with impunity. They were destined by God to suffer immortally, thus placed outside the Varna system. The upper castes by trampling their rights and perpetuating atrocities against them were fulfilling the God’s plan. This situation should have changed after the Independence of India in 1947. Indian State adopted secularism and democracy as its foundational pillars of constitution which guaranteed equal rights to all irrespective of religion, caste, color, class, gender, region and community. These constitutional guarantees and rights should have been translated into action, but alas this is not the case.
The present book under review by the versatile activist Lenin Raghuvanshi is a testimonial documentation of atrocities, exploitation and abuse of rights of Dalits in “free India’. In the Introduction of the book, Lenin depicts the police violence against Dalits, Scheduled Tribes, Scheduled Castes, Crimes against their women and how the culture of impunity shields the guilty. This culture of impunity against the criminals is the biggest threat to the rule of law in India. Lenin woefully states about the Dalit women as, “Dalits are considered untouchables in Indian society yet rape of Dalit women is not considered a taboo by the upper castes. In fact, the latter uses rape as an instrument of continuous subjugation. Dalit women bear a triple burden: discrimination and exploitation based on caste, class and gender. Women are also victims of violence by security forces and armed opposition groups, traditional justice delivery system like ‘caste panchayat’ (illegal body of caste based system in villages) and cruel cultural practices like sati, honor killing and witch hunts. Discriminatory attitudes and lack of sensitization to the dynamics of crimes involving sexual or domestic violence leave victims without critical police aid or redress to which they are entitled”.
Talking about the state of impunity enjoyed by police and security forces Lenin states “In fact, almost every section of the Criminal Procedure Code (CrPc), 1973 provides some kind of impunity. For example, section 46 empowers the police to shoot to kill any accused charged with a crime punishable by death if that accused person attempts to escape from police custody. The police forces of Andhra Pradesh and Uttar Pradesh have made extensive use of this section to cover up fake encounters, killing hundreds of hapless detainees”.
Lenin then goes on to describe south of every village as South Africa because it contains Dalits against whom invisible apartheid is still prevalent. The discrimination against Dalits is both intrinsic and external. The Dalits are illiterate hence they are not aware of their constitutional rights; hence fail to alleviate their status. Rest the caste system is embedded in the Indian society and it manifests itself in various forms. The state of impunity is reinforced by the caste considerations as police fails to bring the culprits of crimes against dalits to book either due to caste bias, influence or lure of money. Dalits many times are collectively punished by the upper castes for the crime or mistake of a single Dalit. These examples bring fore the sad fact that spread of literacy hasn’t helped people grow more empathic towards dalits. Also it unveils a gory reality that Indian State has failed to inculcate spirit and virtues of equality and harmony among its institutions. 
Lenin then moves on to document the plight of Musahar community and their day to day woes. He laments at the post active attitude of the administration in curbing the starvation deaths in this community. The land that is allotted to the Dalits is taken away by upper caste people, and the upper caste Hindu money lenders keep them under perpetual bondage. In this age too there exist bonded laborers in the community. Lenin has worked for Musahars despite impediments by releasing many bonded laborers and establishing a community school, as previously most children were drop outs. He holds the public distribution system responsible for the starvation deaths, as it is corrupt. The medical facilities are lacking which add to the mortality rate. The police still operate on the colonial structure with a communal mindset. Lenin is of the firm opinion that Indian police learnt demoralization and community punishment from the practice of caste system. He then relates many stories of police torture victims. The role of police in fake encounters is also well known, and how they operate in communal riots reinforcing victimization of the minorities. 
The police torture is widespread in India, and “The biggest problem in combating the State on the issues of torture in India has been the non availability of verifiable data” (P-48). In many cases false medical reports of torture victims are produced in league with medical doctors and sometimes reports are concocted by Police themselves. Lenin is aware of the Legal flaws, “The judiciary is hampered by lack of specific legislation to address cases of torture and human rights violations by the security forces as well due to delayed judicial processes. All these leave the poor victim lonelier, shattered and completely disintegrated, irrespective of economic status” (P-49). Lenin wants and desires, “India is yet to adopt any legislation recognizing the right to compensation for human rights violations. The government continues to maintain its reservation to Article 9 of the International Covenant on Civil and Political Rights which states that under the Indian legal system there is no enforceable right to compensation for persons claiming to be victims of unlawful arrest or detention against the State. The courts and National Human Rights institutions, however, have awarded compensation for human rights violations, including torture”. (P-49). 
The chapter on Testimonial Therapy is the jewel of the book. It gives hope to the victims of torture to overcome the psychological trauma in post torture phase. But only a few pages are dedicated to explain the testimonial therapy. Lenin abruptly moves to the Shrinking Livelihood in India. He quotes as case studies, the decline in the production of world famous Benaras Silk, as a result of the rival Chinese silk. Lenin relates the diseases associated with the handlooms and the Tuberculosis being rampant among the handloom workers and weavers. Then he again states about the severe malnutrition in Uttar Pradesh, though it is not Somalia. Lenin continues with the child starvation deaths this time in Ghasias community, who are also victim of government apathy.
The last two chapters deal with Rule of Lords, Political Patronage & how caste, patriarchy and corruption help in perpetuation of the same. Lenin relates violence against women, in the form of infanticide, honor killings, domestic violence, child marriages, infant and maternal mortality rates. If certain women make it to the panchayats still their husbands control the affairs. 
Lenin then goes on to track the record of victims of fake encounters, extra and custodial killings by the Police since 1960s, which rose to epidemic proportions in early 1990s when innocents were being targeted as Maoists, Sikh militants or Islamic Jihadi extremists. The incompetence of National Human Rights Commission to protect human rights of innocents has rendered it as a toothless tiger. The State also acts softly on Hindutva fascist cadres. To add insult to injury criminalization of politics is ruling roost. 
Overall the book is a welcome read and must for everyone who wants to be aware of the underbelly of Indian State. But the scheme of chapters and selection of case studies at times betray the title of the book, the scope of the book is much wider than its title conveys. It covers a lot of ground, but thematically it appears to be jumbled in a hurry. Despite its flaws Lenin needs to be congratulated for his endeavor. This book is a testimony to the fact that there are serious problems and grave issues with the project of ‘Shining India’.
(The author is Writer-Activist based in Srinagar, Kashmir and can be reached at sikandarmushtaq@gmail.com)

Equality for Dalits: Does it exist? - Kashmir Times

Equality for Dalits: Does it exist? - Kashmir Times


Equality for Dalits: Does it exist?
Reviewed By Mushtaq Ul Haq Ahmad Sikander
Book Review
Justice, Liberty, Equality: Dalits in Independent India
Author: Lenin Raghuvanshi
Publisher: Frontpage Publications, London, U.K
Year of Publication: 2012
Price: Not Mentioned Pages: 135
ISBN: 9789381043042
Dalits in India have been suffering since time immemorial in India. Hinduism which believed in Varna system of caste coupled with the Aryan supremacy structured the prejudice, bias and exploitation against dalits. It was deemed to be God ordained commandment on the higher castes to demean, exploit and kill them with impunity. They were destined by God to suffer immortally, thus placed outside the Varna system. The upper castes by trampling their rights and perpetuating atrocities against them were fulfilling the God’s plan. This situation should have changed after the Independence of India in 1947. Indian State adopted secularism and democracy as its foundational pillars of constitution which guaranteed equal rights to all irrespective of religion, caste, color, class, gender, region and community. These constitutional guarantees and rights should have been translated into action, but alas this is not the case.
The present book under review by the versatile activist Lenin Raghuvanshi is a testimonial documentation of atrocities, exploitation and abuse of rights of Dalits in “free India’. In the Introduction of the book, Lenin depicts the police violence against Dalits, Scheduled Tribes, Scheduled Castes, Crimes against their women and how the culture of impunity shields the guilty. This culture of impunity against the criminals is the biggest threat to the rule of law in India. Lenin woefully states about the Dalit women as, “Dalits are considered untouchables in Indian society yet rape of Dalit women is not considered a taboo by the upper castes. In fact, the latter uses rape as an instrument of continuous subjugation. Dalit women bear a triple burden: discrimination and exploitation based on caste, class and gender. Women are also victims of violence by security forces and armed opposition groups, traditional justice delivery system like ‘caste panchayat’ (illegal body of caste based system in villages) and cruel cultural practices like sati, honor killing and witch hunts. Discriminatory attitudes and lack of sensitization to the dynamics of crimes involving sexual or domestic violence leave victims without critical police aid or redress to which they are entitled”.
Talking about the state of impunity enjoyed by police and security forces Lenin states “In fact, almost every section of the Criminal Procedure Code (CrPc), 1973 provides some kind of impunity. For example, section 46 empowers the police to shoot to kill any accused charged with a crime punishable by death if that accused person attempts to escape from police custody. The police forces of Andhra Pradesh and Uttar Pradesh have made extensive use of this section to cover up fake encounters, killing hundreds of hapless detainees”.
Lenin then goes on to describe south of every village as South Africa because it contains Dalits against whom invisible apartheid is still prevalent. The discrimination against Dalits is both intrinsic and external. The Dalits are illiterate hence they are not aware of their constitutional rights; hence fail to alleviate their status. Rest the caste system is embedded in the Indian society and it manifests itself in various forms. The state of impunity is reinforced by the caste considerations as police fails to bring the culprits of crimes against dalits to book either due to caste bias, influence or lure of money. Dalits many times are collectively punished by the upper castes for the crime or mistake of a single Dalit. These examples bring fore the sad fact that spread of literacy hasn’t helped people grow more empathic towards dalits. Also it unveils a gory reality that Indian State has failed to inculcate spirit and virtues of equality and harmony among its institutions. 
Lenin then moves on to document the plight of Musahar community and their day to day woes. He laments at the post active attitude of the administration in curbing the starvation deaths in this community. The land that is allotted to the Dalits is taken away by upper caste people, and the upper caste Hindu money lenders keep them under perpetual bondage. In this age too there exist bonded laborers in the community. Lenin has worked for Musahars despite impediments by releasing many bonded laborers and establishing a community school, as previously most children were drop outs. He holds the public distribution system responsible for the starvation deaths, as it is corrupt. The medical facilities are lacking which add to the mortality rate. The police still operate on the colonial structure with a communal mindset. Lenin is of the firm opinion that Indian police learnt demoralization and community punishment from the practice of caste system. He then relates many stories of police torture victims. The role of police in fake encounters is also well known, and how they operate in communal riots reinforcing victimization of the minorities. 
The police torture is widespread in India, and “The biggest problem in combating the State on the issues of torture in India has been the non availability of verifiable data” (P-48). In many cases false medical reports of torture victims are produced in league with medical doctors and sometimes reports are concocted by Police themselves. Lenin is aware of the Legal flaws, “The judiciary is hampered by lack of specific legislation to address cases of torture and human rights violations by the security forces as well due to delayed judicial processes. All these leave the poor victim lonelier, shattered and completely disintegrated, irrespective of economic status” (P-49). Lenin wants and desires, “India is yet to adopt any legislation recognizing the right to compensation for human rights violations. The government continues to maintain its reservation to Article 9 of the International Covenant on Civil and Political Rights which states that under the Indian legal system there is no enforceable right to compensation for persons claiming to be victims of unlawful arrest or detention against the State. The courts and National Human Rights institutions, however, have awarded compensation for human rights violations, including torture”. (P-49). 
The chapter on Testimonial Therapy is the jewel of the book. It gives hope to the victims of torture to overcome the psychological trauma in post torture phase. But only a few pages are dedicated to explain the testimonial therapy. Lenin abruptly moves to the Shrinking Livelihood in India. He quotes as case studies, the decline in the production of world famous Benaras Silk, as a result of the rival Chinese silk. Lenin relates the diseases associated with the handlooms and the Tuberculosis being rampant among the handloom workers and weavers. Then he again states about the severe malnutrition in Uttar Pradesh, though it is not Somalia. Lenin continues with the child starvation deaths this time in Ghasias community, who are also victim of government apathy.
The last two chapters deal with Rule of Lords, Political Patronage & how caste, patriarchy and corruption help in perpetuation of the same. Lenin relates violence against women, in the form of infanticide, honor killings, domestic violence, child marriages, infant and maternal mortality rates. If certain women make it to the panchayats still their husbands control the affairs. 
Lenin then goes on to track the record of victims of fake encounters, extra and custodial killings by the Police since 1960s, which rose to epidemic proportions in early 1990s when innocents were being targeted as Maoists, Sikh militants or Islamic Jihadi extremists. The incompetence of National Human Rights Commission to protect human rights of innocents has rendered it as a toothless tiger. The State also acts softly on Hindutva fascist cadres. To add insult to injury criminalization of politics is ruling roost. 
Overall the book is a welcome read and must for everyone who wants to be aware of the underbelly of Indian State. But the scheme of chapters and selection of case studies at times betray the title of the book, the scope of the book is much wider than its title conveys. It covers a lot of ground, but thematically it appears to be jumbled in a hurry. Despite its flaws Lenin needs to be congratulated for his endeavor. This book is a testimony to the fact that there are serious problems and grave issues with the project of ‘Shining India’.
(The author is Writer-Activist based in Srinagar, Kashmir and can be reached at sikandarmushtaq@gmail.com)

Monday, July 9, 2012

Girl made to drink urine for bedwetting in West Bengal school

                                                                                                                                दिनांक - 09 जून, 2012.

सेवा में,                                                                                                             
      श्रीमान अध्यक्ष महोदय,

      राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग,

      नई दिल्‍ली।

विषय - Girl made to drink urine for bedwetting in West Bengal school

महोदय,

          हम आपका ध्यान विषयक की ओर आकृष्ट कराना चन्हुंगा, मामले मे पाचवी कक्षा की छात्रा को जबरदस्ती अमानवीय कृत्य कराया गया है. जिससे बच्ची की हालत गम्भीर हो गयी है !

कृप्या  संलग्नक  देखे - http://in.video.yahoo.com/news-26036098/national-26073656/girl-made-to-drink-urine-for-bedwetting-in-west-bengal-school-29917151.html#crsl=%252Fnews-26036098%252Fnational-26073656%252Fwarden-who-made-girl-drink-urine-arrested-29922117.html

         विदित हो की इस तरह के मामले मे हिलाहवाली की जाती है और परिजनो पर दबाब बनाया जाता है !

          अत: आपसे अनुरोध है की मामले मे अपने स्तर से स्वत जांच कर न्यायोचित कदम उठाते हुए कठोर से कठोर कानूनी कार्यवाही करने की कृपा करे, जिससे बच्चो पर हो रहे अत्याचार को रोकने मे उदाहरण साबित हो !

भवदीय

(डा0 लेनिन)

 महासचिव
मानवाधिकार जन निगरानी समिति - वाराणसी,
सा 4/2ए., दौलतपुर, वाराणसी - 221002,
उत्तर प्रदेश - भारत !
 
मो0 - +91-9935599333.
ई - मेल - lenin@pvchr.asia
 


--

Upendra Kumar
Manager Model Block,
PVCHR/JMN,
Sa 4/2A, Daulatpur, Varanasi,
U.P.-India-221002.
Mob:-  +91-9935599338

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Friday, July 6, 2012

विध्धुत करंट से झुलसे विध्धुत मज़दूर की मौत के सन्दर्भ मे !

                                                                                                                                दिनांक - 06 जून, 2012.

सेवा मे,

          श्रीमान अध्यक्ष महोदय,

           राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग,

           नई दिल्ली - भारत !

विषय - विध्धुत करंट से झुलसे विध्धुत मज़दूर की मौत के सन्दर्भ मे !

महोदय,

         हम आपका ध्यान उत्तर प्रदेश के वराणसी जनपद के काशी सब स्टेशन पर लगी आग बुझाने के दौरान झुलस गये मज़दूर अल्पू उम्र - 55 वर्ष की ओर आकृष्ट कराना चान्हुंगा ! जिसकी मौत एक निजी अस्पताल मे हो गयी !

        मृतक संविदा पर कार्यरत था, पहले भी इस तरह की हादसे वहा हो चुके है, फिर भी अधिकारीगण इस ओर लापरवाही बरतते है और संविदाकर्मियो के प्रति उपेक्षा रखते है ! जो मानव गरिमा के साथ खिलवाड है !

संलगंक :-  http://rashtriyasahara.samaylive.com/epapermain.aspx?queryed=22

                 अत: आपसे अनुरोध है की मामले मे न्यायोचित कानूनी कार्यवाही करते हुए पीडित के परिजन को उचित मुआवजा प्रदान कराने की कृपा करे ! .

भवदीय

(डा0 लेनिन)

 महासचिव
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संलग्नक - http://rashtriyasahara.samaylive.com/epapermain.aspx?queryed=22

करंट से झुलसे विद्युत मजदूर की मौत

वाराणसी (एसएनबी) । काशी सब स्टेशन पर पिछले दिनों लगी आग को बुझाने के दौरान झुलस गये विद्युत मजदूर अल्पू (55) की गुरुवार को एक निजी चिकित्सालय में मौत हो गयी। इधर साथियों ने संविदा विद्युतकर्मियों के शोषण का आरोप लगाते हुए कहा है कि मृत अल्पू के परिजनों को पांच लाख रुपया मुआवजा दिये जाने और परिवार के एक सदस्य को नौकरी दिये जाने की मांग की है। कर्मचारियों का कहना था कि कई बार पहले भी इस तरह के हादसे हो चुके हैं जिसमें काम करने के दौरान करंट लगने या फिर आग लगने पर आग बुझाने के दौरान कई संविदाकर्मियों की मौत हो चुकी है। तमाम हादसों के बावजूद उन्हें किसी तरह की सुविधा नहीं प्रदान किया जाना यह सिद्ध करता है कि उनकी उपेक्षा की जा रही है। उनका कहना था कि पिछले दिनों हमारे प्रति पूर्वाचल के प्रबंध निदेशक विश्वास पंत ने इस विषय् पर सकारात्मक पहल की थी, लेकिन उनके स्थानान्तरण के बाद एक बार फिर पूरा मामला ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया। संविदाकर्मियों ने कहा कि अधिकतर सब् स्टेशनों पर से ठेकेदारों के ठेके खत्म ह गये हैं, लेकिन उसके बावजूद विभाग काय् ले रहा है। विभाग की मिलीभगत स् ठेकेदार उनका शोषण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि उनकी मांगों के प्रति सहानुभूतिपूर्वक विचार नहीं किया जाता ह तो वे आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।

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महिला कांस्टेबल द्वारा पीडित महिला के साथ दुर्व्यवहार करना और सार्वजनिक रूप से मानसिक प्रताडित करने के सन्दर्भ मे !

                                                                                                                                दिनांक - 06 जून, 2012.

सेवा मे,

          श्रीमान अध्यक्ष महोदय,

           राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग,

           नई दिल्ली - भारत !

विषय - महिला कांस्टेबल द्वारा पीडित महिला के साथ दुर्व्यवहार करना और सार्वजनिक रूप से मानसिक प्रताडित करने के सन्दर्भ मे !

महोदय,

         हम आपका ध्यान उत्तर प्रदेश के वराणसी जनपद के सारनाथ थाना क्षेत्र के दनियालपुर् गांव के निवासनी शिल्पा की ओर आकृष्ट कराना चान्हुगा, जहा एसएसपी आफिस मे बने महिला प्रकोष्ठ के महिला कांस्टेबल द्वारा बयान लेने हेतु बुलाये गयी घरेलू हिंसा के प्रताडित पीडिता के साथ सार्वजनिक रूप से कचहरी परिसर मे एक वकील के चौकी पर मानसिक रूप से प्रताडित किया गया और फरमान जारी कर कहा कि चलो सुलह हो गयी ! 

       एक तरफा कार्यवाही और दुर्वयवहार के कारण पीडिता रोने लगी तथा लडकी के परिजन ने जब कहा की इस तरह से गांव के लोंगो के सामने खिल्ली उडाना बन्द करे तब महिला कांस्टेबल ने डांट कर बोली की लडकी वालो को जेल भेज देंगे, कम उम्र मे शादी हुयी है. वहा पर सैकडो की सख्या मे लोंग ईकठ्ठा हो गये, फिर भी महिला कांस्टेबल ने वही पर कार्यवाही कराना जरूरी समझा !

      समिति के लोंगो ने जब इस पर आपत्ति जाहिर किया तब वे बोली की मुझे इस योग्य समझा गया है, इसलिए मुझे जांच करने को सौपा गया है !

संलगंक :-  http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20120705a_005190008&ileft=110&itop=411&zoomRatio=182&AN=20120705a_005190008

        विदित हो की इस तरह की समझौता कराने मे पुलिसकर्मी द्वारा एक पक्षीय कार्यवाही की जाती है और रौब बनाने तथा चुप्पी की संस्कृति को बढावा दिया जाता है !

          अत: आपसे अनुरोध है की मामले मे न्यायोचित कानूनी कार्यवाही की जाए जिससे पीडिता के साथ न्याय हो तथा दोषियो के खिलाफ कार्यवाही हो.

भवदीय

(डा0 लेनिन)

 महासचिव
मानवाधिकार जन निगरानी समिति - वाराणसी,
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उत्तर प्रदेश - भारत !
 
मो0 - +91-9935599333.
ई - मेल - lenin@pvchr.asia
 

संलग्नक - http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20120705a_005190008&ileft=110&itop=411&zoomRatio=182&AN=20120705a_005190008

महिला कांस्टेबल ने लगाई कचहरी, खड़ा हुआ बखेड़ा
अमर उजाला ब्यूरो
वाराणसी। महिला कांस्टेबल ने पूछा 'बताओ तुमने क्या तय किया?' पति ने कहा 'साथ जाना चाहती है। मैं उसे रखने को तैयार हूं।' कांस्टेबल ने कहा 'पत्नी की उमर कम है। मारना-पीटना नहीं। बीमार होने पर इलाज कराना। कोई शिकायत नहीं मिलनी चाहिए।' उसके बाद उसने दोनों के अभिभावकों को समझाना शुरू किया। लड़की की मां को डांटा 'कम उम्र में शादी कर देती हो, मुकदमा चलेगा तो समझ जाओगी।' फिर सबसे मुखातिब हुई और कहा कि दोनों की सास ही मिलने नहीं देना चाहतीं। लड़की की सास से कहा कि गांव की औरतों को बुलवाकर बहू की खिल्ली उड़ाना बंद करो।
पूरी कार्रवाई एसएसपी आफिस में बने महिला प्रकोष्ठ की बजाय कलक्ट्रेट में एक अधिवक्ता की चौकी पर चल रही थी। इस तरह कचहरी लगाने का लड़की पक्ष के लोगों ने विरोध भी किया, लेकिन कांस्टेबल ने कुछ नहीं सुनी और फरमान जारी कर कहा कि चलो सुलह हो गई। जाओ फोटो खिंचवाकर आओ। उसके बाद लड़की फूट-फूटकर रोने लगी। वधू पक्ष के लोग बयान दिए बगैर ही चले गए। बखेड़ा खड़ा हो गया। ऐसे में कांस्टेबल पति को महिला प्रकोष्ठ ले गई और वहां बयान दर्ज किया।
दनियालपुर के रहने वाली युवती की शादी खालिसपुर के एक युवक से हुई थी। युवती की मां ने आवेदन दिया कि उसने एक तोले सोने की चेन, मोटरसाइकिल के लिए 60 हजार रुपये तथा अन्य सामान दिए पर ट्राली चलाकर गुजारा करने वाला पति मनोज, ससुर मुन्नू, सास कलावती देवी और दो ननदें उसकी बेटी को प्रताड़ित कर रही हैं। उसपर 50 हजार रुपये लाने के लिए दबाव डाला गया। इनकार करने पर उसकी पिटाई की गई। बीमार होने पर उसका इलाज तक नहीं कराया जाता। इसी मामले की सुनवाई सरेआम कर दी गई। महिला के अधिवक्ता ने चेग्वारा रघुवंशी ने सार्वजनिक रूप से बयान लेने पर आपत्ति जताई। उनका कहना था कि महिला पहले से ही पीड़ित है।
इस तरह उसे और प्रताड़ित किया जा रहा है। इसपर कांस्टेबल भड़क गई। आवेदन तमाम अधिकारियों के पास से यहां आया है। उन्होंने मुझे किसी काबिल समझा है तब तो जांच सौंपी है। प्रकोष्ठ में अंधेरा होने के कारण यहां बयान लेना पड़ रहा है। वधू पक्ष की ओर से आए मानवाधिकार कार्यकर्ता शिव प्रताप चौबे का कहना है कि वह इस मामले में जिलाधिकारी को शपथपत्र देंगे।
पीड़ित महिला से सार्वजनिक रूप से बयान लेने पर भड़का मामला, डीएम को देंगे शपथ पत्र
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सिपाही के पिटाई के कारण वृद्ध की मौत के सन्दर्भ मे !

                                                                                                                                दिनांक - 06 जून, 2012.

सेवा मे,

          श्रीमान अध्यक्ष महोदय,

           राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग,

           नई दिल्ली - भारत !

विषय - सिपाही के पिटाई के कारण वृद्ध की मौत के सन्दर्भ मे !

महोदय,

         हम आपका ध्यान उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर जनपद के करंडा थाना क्षेत्र के मेदिनीपुर गांव के शिवजनम गुप्ता की ओर आकृष्ट कराना चान्हुगा, जहा करंडा थान के सिपाही के द्वारा मारपीट के दौरान उनकी मौत हो गयी !

संलगंक :-  php?Artname=20120702a_009190007&ileft=-5&itop=806&zoomRatio=276&AN=20120702a_009190007 

        विदित हो की इस तरह की समझौता कराने मे पुलिसकर्मी द्वारा एक पक्षीय कार्यवाही की जाती है और समझाने के जगह मारपीट कर रौब बनाना तथा चुप्पी की संस्कृति को बढावा दिया जाता है, इस मामले मे भी डी.के.बसु बनाम प0 बंगाल मे दिये गये फैसलो की धज्जिया उडायी गयी है.

          अत: आपसे अनुरोध है की मामले मे न्यायिक जांच कराते हुए कानूनी कार्यवाही की जाए और पीडित परिजनो को सुरक्षा के साथ मुआवजा प्रदान कराने की कृपा करे !

भवदीय

(डा0 लेनिन)

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संलग्नक -http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20120702a_009190007&ileft=-5&itop=806&zoomRatio=276&AN=20120702a_009190007

सिपाही के थप्पड़ से वृद्ध की मौत !
संवाददाता
करंडा (गाजीपुर)। बहू के शिकायती पत्र पर पूछताछ के लिए रविवार को करंडा थाने में बुलाए गए एक वृद्ध की मौत हो गई। इस मामले में मृतक के पुत्र ने एक सिपाही पर कई आरोप लगाते हुए तहरीर दी है। उसका कहना था कि थाने में रौब गालिब करते हुए सिपाही ने मेरे पिता को थप्पड़ जड़ दिया। इससे उनकी हालत इस कदर बिगड़ी की वह चले बसे। एसपी सिटी ने मृतक को हार्ट का मरीज बताते हुुए कांस्टेबल पर लगाए गए आरोप को निराधार बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया है।
वाकया करंडा थाना क्षेत्र के मेदिनीपुर गांव का है। यहां शिवजनम गुप्ता के दो पुत्रों में बड़े पुत्र ताराचंद की मौत हो गई है। मृतक की विधवा चंद्रशीला अपने पुत्र भूपेंद्र गुप्ता के सहारे गुजर बसर कर रही है। हिस्से के बंटवारे को लेकर उसका घर में ही विवाद चल रहा है। बीते 29 जून को विधवा ने अपने ससुर शिवजनम गुप्ता तथा देवर कमला गुप्ता के खिलाफ पुलिस को तहरीर देकर मामले में न्याय की गुहार लगाई। रविवार को करंडा थाने के सिपाही विजय बहादुर कुशवाहा को थानाध्यक्ष दयाशंकर पांडेय ने मेदिनीपुर गांव भेजा और दोनों पक्षों को बुलाकर थाने पर लाने को कहा। साढ़े नौ बजे एक पक्ष से कमला गुप्ता पिता 80 वर्षीय शिवजनम गुप्त को बाइक पर बैठा कर थाने पहुंचा। कमला की मां मुराही देवी भी अपनी छोटी बहू बृजरानी के साथ थाने पर पहुंच गई। पिता को थाना परिसर में उतारा। थोड़ी ही देर में उनकी हालत बिगड़ गई और मौत हो गई।
गाजीपुर के करंडा थाना परिसर में हुई घटना


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छत्तीसगढ़ राज्य के बीजापुर के बासागुडा में 28 जून की रात सुरक्षा बलों दवारा निर्दोष ग्रामीण आदिवासियों का नरसंहार के सन्दर्भ मे !

                                                                                                                                दिनांक - 06 जून, 2012.

सेवा मे,

          श्रीमान अध्यक्ष महोदय,

           राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग,

           नई दिल्ली - भारत !

विषय - छत्तीसगढ़  राज्य के बीजापुर के बासागुडा में 28 जून की रात सुरक्षा बलों दवारा निर्दोष ग्रामीण आदिवासियों का नरसंहार के सन्दर्भ मे !

महोदय,

          हम आपका ध्यान विषयक की ओर आकृष्ट कराना चन्हुंगा, जहा केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल 19 ग्रामीणों में आठ नाबालिग बच्चे हैं जिनकी उम्र 13 साल से लेकर 16 साल के बीच है. घायलों में भी तीन नाबालिग बच्चे हैं.

         अधिकारी जिन्होंने इस अभियान का नेतृत्व किया था कहते हैं कि सुरक्षा बलों के जवानों पर अत्याधुनिक हथियारों से गोलियां चलाई गई थी, जवाबी कारावाई में सुरक्षाबलों नें भी गोलियां चलाई थी.मगर इस मामले का गंभीर पहलू यह है कि घटना स्थल से हथियार बरामद किए जाने का जो दावा सुरक्षा बल के अधिकारी कर रहे हैं उनमे से एक भी अत्याधुनिक हथियार नहीं है. 

         केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल ने जो घायल जवानों की मेडिकल रिपोर्ट उपलब्ध कराये है उसमे सिर्फ एक जवान हवालदार के.राजन के पैर में छर्रे के ज़ख्म की बात कही गई है, जबकि बाकी के पांच जवानों को अत्याधुनिक हत्यारों की गोलियों के जख्म हैं. यह वही हथियार हैं जिसका इस्तेमाल सुरक्षा बल के जवान ही करते हैं.       

जिन जवानों को अत्याधुनिक हथियारों की गोलियां लगी हैं उनमे कोबरा बटालियन के गयेंद्र सिंह, वहीदुल इस्लाम, अरुनव घोष, किशन कुमार और एसएस राणा शामिल हैं जिनका इलाज रायपुर के अस्पताल में चल रहा है.

          वहा की पीडितो का कहना है, "हम सब बीच मैदान में बैठे थे. चारों तरफ से गोलियां चल रहीं थी. वही गोलियां सुरक्षाबल के जवानों को आपस में लगी हैं. उनकी गोलीबारी में गाँव के बैल मरे, सूअर मरे. जो लोग भग रहे थे उनपर सुरक्षाबल के जवान ही गोलियां चला रहे थे. उन्हें खुद की गोलियां लगी हैं और वह कह रहे हैं माओवादियों नें गोलियां चलायीं हैं. बैठक में सिर्फ ग्रामीण थे."

         विदित हो की माओवादी के साथ मुठ्भेड के नाम पर इसी तरह की नरसंहार चलाया जाता है, और शासन तथा प्रशासन द्वारा माफी मांग कर और मामले मे हिला हवाली कर दबा दिया जाता है. यह मुठभेड़ नहीं 'नरसंहार' है.

संलग्नक - http://www.bbc.co.uk/hindi/mobile/india/2012/07/120705_chhattisgarh_naxal_tb.shtml?SThisFacebook

          अत: आपसे अनुरोध है की मामले मे न्यायिक जांच कराते हुए कानूनी कार्यवाही की जाए और पीडितो को सुरक्षा के साथ मुआवजा प्रदान कराने की कृपा करे !

भवदीय

(डा0 लेनिन)

 महासचिव
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सा 4/2ए., दौलतपुर, वाराणसी - 221002,
उत्तर प्रदेश - भारत !
 
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Thursday, July 5, 2012

बिना पूर्व सूचना के ग्राम भरदुआ, नौगढ़, जनपद चन्दौली में वनविभाग द्वारा 29 जून 2012 को आदिवासियों एवं दलितों की झोपडि़यों को गिराए जाने से सैंकड़ों परिवार बारिश के मौसम में बेघर और कई जनपदो मे अनुसूचित जनजाति के पहचान से महरूम होने पर संवैधानिक अधिका

                                                                                                                                 दिनांक - 06 जून, 2012.
सेवा मे,
          माननीय मुख्यमंत्री जी,
          उत्तर प्रदेश शासन - लखनऊ !
 
विषय : - बिना पूर्व सूचना के ग्राम भरदुआ, नौगढ़, जनपद चन्दौली में वनविभाग द्वारा 29 जून 2012 को आदिवासियों एवं दलितों की झोपडि़यों को गिराए जाने से सैंकड़ों परिवार बारिश के मौसम में बेघर और कई जनपदो मे अनुसूचित जनजाति के पहचान से महरूम होने पर संवैधानिक अधिकार की बहाली कराने के सन्दर्भ मे !
 
महोदय,
           हम आपका ध्यान विषयक के सन्दर्भ मे आकृष्ट कराना चन्हुंगा, जहा वनविभाग मय पुलिस फोर्स व कुछ बी0एस0एफ के जवानों के साथ बुलडोज़र लेकर भरदुआ गांव में पहुंचे और लगभग 50 झोपड़ीयों को बिना किसी नोटिस दिए ढहा दिया। यह सभी झोपड़ीयां गोंड़ आदिवासीयों, मुसहर जाति, दलित व अन्य ग़रीब समुदाय की थी।
वनविभाग द्वारा कहा जा रहा है " यह लोग अतिक्रमणकारी है जिसके लिए उन्हें जिलाधिकारी द्वारा र्निदेश दिए गए थे, इसलिए अतिक्रमण हटाया गया है। सम्बन्धित जनपद के जिलाधिकारी किसी भी आदेश - निर्देश को देने से इंकार किया है।
 
           विदित हो की यह कार्यवाही उन परिवारों पर की गई है जो कि प्रदेश में लागू वनाधिकार कानून - 2006 के अंतर्गत अपने अधिकारो को पाने के लिए हकदार है और यह परिवार 15 दिसम्बर 2006 के पूर्व से यहां बसे हुए हैं।
 
           पूर्व मे भी इन परिवारों को सन् 2003 में भी वनविभाग द्वारा इस भूमि से बेदखल किया गया था, इनकी फसलें उजाड़ दी गई थी और इन्हें अतिक्रमणकारी घोषित कर आदिवासीयों की ही भूमि पर वनविभाग द्वारा कब्ज़ा कर लिया गया था।
 
           वनविभाग द्वारा मनमानी कार्यवाही की जा रही है व यहां पर रहने वाले आदिवासीयों का उत्पीड़न किया जा रहा है, उनके घरों से उन्हें बेदखल किया जा रहा है, उनके उपर झूठे मुकदमें लादे जा रहे हैं व उन्हें जेल भेजा जा रहा है।  
 
           वनाधिकार कानून आदिवासी और दलित समुदायो के मानव गरिमा को बचाने व विस्थापन रोकने हेतु बनायी गयी, लेकिन चन्दौली जनपद मे वन विभाग द्वारा तभी से लगातार जमीन अधिग्रहण करने और वर्षो से उक्त जमीन पर रहते आ रहे गरीब लोंगो के साथ धोखा - धडी और उन्ही के समुदाय के लोंगो को पद और लालच दे कर विरोधी बनाने का कार्य वन विभाग द्वारा षड्यंत्रकारी रवैया रहा है, जैसा की पूर्व के काई मामलो मे कार्य करते हुए बाते सामने आयी है !
          वनाधिकार कानून आने के बाद उनका उक्त भूमि पर दावा और भी मजबूत हुआ, लेकिन चन्दौली जनपद के आदिवासीयों के साथ जनपद के बंटवारे के चलते एक बार फिर धोखाधड़ी हुई। सन् 2002 में सपा सरकार के ही दौरान प्रदेश के तेरह आदिवासी समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल किया गया था, उस समय चन्दौली जनपद वाराणसी में ही शामिल था। सन् 2004 में चन्दौली को पुन: एक अलग जनपद बनाया गया, अलग जनपद बनते ही चन्दौली जनपद में रहने वाले तमाम अनुसूचित जनजातियों को प्राप्त दर्जा भी उनसे छीन लिया गया। जबकि अगर वे वाराणसी में अनु0 जनजाति में शामिल थे तो राज्य सरकार द्वारा उन्हें वहीं दर्जा जनपद चन्दौली में दिया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया ! जिसके कारण आज भी जनपद चन्दौली के निवासी अपनी पहचान से महरूम हैं। यह भी एक विडम्बना ही है कि इस जनपद के आदिवासीयों को उनके संवैधानिक अधिकार की बहाल नहीं हो सकी है।
सरकारों द्वारा यहां के आदिवासीयों की संवैधानिक अधिकारों की बहाली न करने का खामियाजा आज भी यहां के
 
आदिवासी चुका रहे हैं जिन्हें वनाधिकार कानून 2006 से वंचित किया जा रहा है । वहीं वनविभाग द्वारा इस स्थिति
 
 का फायदा उठा कर मनमानी कार्यवाही की जा रही है व यहां पर रहने वाले आदिवासीयों का उत्पीड़न किया जा रहा
 
 है, उनके घरों से उन्हें बेदखल किया जा रहा है, उनके उपर झूठे मुकदमें लादे जा रहे हैं व उन्हें जेल भेजा जा रहा है। 
         
           अनुभव यह भी रहा है की बरसात के मौसम मे ही वन विभाग द्वारा इस प्रकार की बर्बर कार्यवाही की जाती रही है, क्योकि पहला - जिससे वहा रह रहे गरीब लोंग असहाय हो भयंकर सबक ले और उनको इस तरह से तोड दिया जाय की दुबारा खडा न हो सके, जो मानव गरिमा के साथ घोर अमानवीय कृत्य है. दुसरा - बरसात मे गिराए व आग लगाये गये झोपडियो का अवशेष भी नही मिले, लोंग अपनी सर को छुपाने मे ही समय नष्ट कर देंगे. तिसरा - गरीबो को फर्जी मुकदमा मे फसाना भी इनका षडयंत्रकारी हथियार होता है.
 
           अत:  आपसे अनुरोध है की मामले मे त्वरित कार्यवाही करते हुए विस्थापन को रोकी जाए और जनपद मे अनुसूचित जनजाति समुदाय को संवैधानिक अधिकार की बहाली कराते हुए  वनाधिकार कानून को सख्ती से पालन का निर्देश दे तथा सैकडो पीडितो को सुरक्षा के साथ मुआवजा प्रदान कराने की कृपा करे !
 
 
भवदीय
 
(डा0 लेनिन)
महासचिव
मानवाधिकार जन निगरानी समिति - वाराणसी,
सा 4/2ए., दौलतपुर, वाराणसी - 221002.
उत्तर प्रदेश - भारत !
 
मो0 - +91-9935599333.
ई- मेल - lenin@pvchr.asia
 
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संलग्नक :- ग्राम भरदुआ, नौगढ़, जनपद चन्दौली उत्तरप्रदेश में वनविभाग द्वारा 29 जून 2012 को आदिवासियों एवं दलितों की झोपडि़यों को बुलडोज़र द्वारा गिराए जाने से सैंकड़ों परिवार बारिश के मौसम में बेघर

चन्दौली 5 जुलाई: दिनांक 29 जून 2012 को जनपद चन्दौली के ग्राम भरदुआ तहसील चकिया में वनविभाग मय पुलिस फोर्स व कुछ बी0एस0एफ के जवानों के साथ बुलडोज़र लेकर इस गांव में पहुंचे और लगभग 50 झोपड़ीयों को बिना किसी नोटिस दिए ढहा दिया। यह सभी झोपड़ीयां गोंड़ आदिवासीयों, मुसहर जाति, दलित व अन्य ग़रीब समुदाय की थी। उनमें कुछ लोगों के नाम रामवृक्ष गोंड़, सीताराम पु़़़त्र रामेशर, बलीराम पुत्र सुकालु अहीर, सुखदेव पुत्र रामवृक्ष गोंड़, रामसूरत गोंड, कालीदास पुत्र मोतीलाल गोंड, मनोज पुत्र रामजीयावन गोंड, सुखराम पुत्र शिववरत गोंड, शिवकुमारी पत्नि रामदेव गोंड, माधो पुत्र टेगर मुसहर, विद्याप्रसाद पुत्र सुखई गडेरी, हीरालाल पुत्र गोवरधन मुसहर, बबुन्दर पुत्र मोती मुसहर, पुनवासी पत्नि टेगर मुसहर, कलावती पत्नि विक्रम मुसहर, राधेश्याम पुत्र रामप्यारे मुसहर, अंगद पुत्र रामप्यारे मुसहर, महरी पत्नि स्व0 रामवृक्ष मुसहर, राजेन्द्र पुत्र मोती मुसहर, कलावती पत्नि रामअवध अनु0 जाति, गंगा पुत्र सुखई गड़ेरी,कालीप्रसाद पुत्र तिवारी कोल, रामप्यारे पुत्र कतवारू मुसहर हैं।
वनविभाग द्वारा यह कहा जा रहा है कि यह लोग अतिक्रमणकारी है जिसके लिए उन्हें जिलाधिकारी द्वारा र्निदेश दिए गए है इन अतिक्रमण को हटाने के लिए। जब  जिलाधिकारी से बात की गई तो उन्होंने इस तरह के किसी भी आदेश को देने से इंकार किया है। यह कार्यवाही उन परिवारों पर की गई है जो कि प्रदेश में लागू वनाधिकार कानून 2006 के अंतर्गत अपने अधिकारो को पाने के लिए हकदार है। और यह परिवार 15 दिसम्बर 2006 के पूर्व से यहां बसे हुए हैं। रा0 वनजन श्रमजीवी मंच से जुड़े कायकर्ता इस क्षेत्र में कई वर्षो से वनाधिकारों के मामले में सघन अनुसंधान कर रह हैं जिसके कारण हम इन परिवारों से पिछले दस वर्षो से जुड़े हुए है। इन परिवारों को सन् 2003 में में भी वनविभाग द्वारा इस भूमि से बेदखल किया गया था, इनकी फसलें उजाड़ दी गई थी और इन्हें अतिक्रमणकारी घोषित कर आदिवासीयों की ही भूमि पर वनविभाग द्वारा कब्ज़ा कर लिया गया था।  यह परिवार वनविभाग से लगातार संघर्ष करते रहे व फिर 2005 में इन परिवारों ने अपनी भूमि को वापिस हासिल किया। वनाधिकार कानून आने के बाद उनका उक्त भूमि पर दावा और भी मजबूत हुआ लेकिन चन्दौली जनपद के आदिवासीयों के साथ जनपद के बंटवारे के चलते एक बार फिर धोखाधड़ी हुई। सन् 2002 में सपा सरकार के ही दौरान प्रदेश के तेरह आदिवासी समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल किया गया था उस समय चन्दौली जनपद वाराणसी में ही शामिल था। सन् 2004 में चन्दौली को पुन एक अलग जनपद बनाया गया, अलग जनपद बनते ही चन्दौली जनपद में रहने वाले तमाम अनुसूचित जनजातियों को प्राप्त दर्जा भी उनसे छीन लिया गया। जबकि अगर वे वाराणसी में अनु0 जनजाति में शामिल थे तो राज्य सरकार द्वारा उन्हें वहीं दर्जा जनपद चन्दौली में दिया जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं किया गया जिसके कारण आज भी जनपद चन्दौली के निवासी अपनी पहचान से महरूम हैं। यह भी एक विडम्बना ही है कि इस जनपद के आदिवासीयों को एक सरकार ने अनु0 जनजाति का दर्जा और दूसरी सरकार ने इस दर्जे को छीन लिया। इस से ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण बात और क्या हो सकती है कि अभी तक यहां के आदिवासीयों को कोई भी सरकार उनके संवैधानिक अधिकार को बहाल नहीं कर पाई है।
सरकारों द्वारा यहां के आदिवासीयों की संवैधानिक अधिकारों की बहाली न करने का खामियाजा आज भी यहां के आदिवासी चुका रहे हैं जिन्हें वनाधिकार कानून 2006 से वंिचत किया जा रहा है । वहीं वनविभाग द्वारा इस स्थिति का फायदा उठा कर मनमानी कार्यवाही की जा रही है व यहां पर रहने वाले आदिवासीयों का उत्पीड़न किया जा रहा है, उनके घरों से उन्हें बेदखल किया जा रहा है, उनके उपर झूठे मुकदमें लादे जा रहे हैं व उन्हें जेल भेजा जा रहा है। 
 
 
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Upendra Kumar
Manager Model Block,
PVCHR/JMN,
Sa 4/2A, Daulatpur, Varanasi,
U.P.-India-221002.
Mob:-  +91-9935599338

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Talk with Lenin Raghuvanshi

Tuesday, July 3, 2012

Fwd: पीडित अमरनाथ शर्मा के पुत्र अमित कुमार के अपहरण मामले मे स्थानीय पुलिस थाना द्वारा हिला - हवाली करना और सम्भावित दोषियो के खिलाफ कार्यवाही नही करने के सन्दर्भ मे !



---------- Forwarded message ----------
From: Detention Watch <pvchr.adv@gmail.com>
Date: 2012/7/3
Subject: पीडित अमरनाथ शर्मा के पुत्र अमित कुमार के अपहरण मामले मे स्थानीय पुलिस थाना द्वारा हिला - हवाली करना और सम्भावित दोषियो के खिलाफ कार्यवाही नही करने के सन्दर्भ मे !
To: uppcc-up@nic.in
Cc: lenin@pvchr.asia, Lenin Raghuvanshi <pvchr.india@gmail.com>


                                                                                                                                दिनांक - 03 जुलाई, 2012.
सेवा मे,
          श्रीमान पुलिस महानिदेशक,
          लखनऊ - उत्तर प्रदेश !
विषय :- पीडित अमरनाथ शर्मा के पुत्र अमित कुमार के अपहरण मामले मे स्थानीय पुलिस थाना द्वारा हिला - हवाली करना और सम्भावित दोषियो के खिलाफ कार्यवाही नही करने के सन्दर्भ मे !
महोदय,
          हम आपका ध्यान विषयक के सम्बन्ध मे आकृष्ट कराना चन्हुंगा, पीडित अमरनाथ शर्मा, पुत्र - स्व0 शिव प्रसाद शर्मा, निवासी - मोहल्ला - 12/87, सी0, लह्ंगपुरा, थाना - चेतगंज, वाराणसी जनपद के है, उनके 19 वर्षीय पुत्र अमित कुमार का दिनांक 29 मई, 2012 को लगभग 6:00 बजे शाम मे अपहरण किया गया ! जिसके तत्काल सूचना स्थानीय थाना चेतगंज के की गयी, वहा गुमशुदगी का मामला दर्ज की गयी !
         इस सन्दर्भ मे दिनांक 05 जून, 2012 को पीडित द्वारा मु0अ0स0 144/12,  थाना चेतगंज मे नामजद प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराया गया, लेकिन आज तक उनके पुत्र का कोई अता- पता नही चल सका है, दूसरी तरफ सम्भावित दोषियो सिद्धनाथ शर्मा, उनका साला दिलीप कुमार शर्मा पुत्र - मुरारी शर्मा द्वारा घूम - घूमकर कह रहे है की अबकि बारी अमरनाथ की है, जबकि F.I.R  मे ये लोंग नामजद है. वही सम्बन्धित थाना जांच प्रक्रिया न चलाकर उल्टे पीडित को ही धमका रहे है, और विवेचना के नाम पर हिला - हवाली की जा रही है.
        न्यायोचित कानूनी कार्यवाही के लिए पीडित उच्च अधिकारियो से गुहार भी लगाये, लेकिन मामले मे किसी भी प्रकार की उचित कार्यवाही नही की गयी है, जिससे पीडित का मनोस्थिति बिगडती जा रही है और हताश व निराश है ! 
        अत: श्रीमान से निवेदन है की मामले मे हस्तक्षेप कर पीडित के पुत्र को बरमदी करवाने तथा परिजन व गवाहो को सुरक्षा प्रदान कराते हुए सम्भावित दोषियो एवम थाना पर न्यायोचित कार्यवाही करने की कृपा करे !
भवदीय

(ड0 लेनिन)
महासचिव
मानवाधिकार जन निगरानी समिति,
सा 4/2 ए., दौलतपुर, वाराणसी - 221002,
उत्तर प्रदेश - भारत !
मो0 - +91- 9935599333.
ई - मेल - lenin@pvchr.asia

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Upendra Kumar
Manager Model Block,
PVCHR/JMN,
Sa 4/2A, Daulatpur, Varanasi,
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